स्टोन क्रशर मालिकों की मनमानी पर अंकुश क्यों नहीं?

उत्तराखंड में खनन पर रोक के हाईकोर्ट के फैसले को पलट कर सुप्रीम कोर्ट ने रेता, बजरी और पत्थर (आरबीएम) के जरूरतमंदों को राहत दी है. पिछले दिनों खनन पर रोक के चलते इन लोगों को महंगे दामों पर आरबीएम खरीदना पड़ा. उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर कुछ स्टोन क्रशर मालिकों ने जमकर चांदी काटी. दरअसल राज्य में कई स्टोन क्रशरों ने आरबीएम के भंडारण की अनुमति ली हुई थी. जब हाईकोर्ट के आदेश से खनन पर रोक लगी तो इनमें से कई स्टोन क्रशर मालिकों ने अपने पास जमा स्टॉक को मनमाने दामों पर बेचा. इस तरह खनन विभाग और भू-तत्व खनिकर्म इकाई की ओर से तय रेटों की जमकर धज्जियां उड़ाई गईं.

कुमाऊं मंडल में रामनगर से लेकर हल्द्वानी तक हर जगह यही स्थिति रही. बताया जाता है कि बेतालघाट और हल्द्वानी में रेता-बजरी 90 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से बेचा गया. स्थानीय लोगों के मुताबिक दिखावे के तौर पर पर्चियां तो प्रति कुंतल 40 या 50 रुपए के हिसाब से काटी गईं लेकिन  वास्तव में 90 रुपए प्रति कुंतल के रेट से खनिज बेचा गया. रामनगर में खनन बंद होने का असर इससे जुड़े छोटे मोटे लोगों की आजीविका पर तो पड़ा लेकिन जिन स्टोन क्रशर मालिकों ने बड़ा स्टॉक जमा किया हुआ था उनके लिये तो मानो अच्छे दिन ही आ गए. कई क्रशर मालिकों ने मानकों से अधिक स्टॉक जमा किया था. कई जगहों पर छापेमारी में इसकी पुष्टि भी हुई. इससे साफ है कि नदियों को व्यापक पैमाने पर छलनी-छलनी किया जा रहा है.

हल्द्वानी निवासी दिनेश चंदोला इसे स्टोन क्रशर मालिकों और शासन-प्रशासन की मिलीभगत का नतीजा मानते हैं जिसका खामियाज़ा जनता चुकाती है. स्टोन क्रशरों के प्रति शासन-प्रशासन की दरियादिली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन्हें बनाने की आड़ में काफी गहराई और चौड़ाई में जमीन खोद कर उसका पत्थर क्रश कर बेचा जाता है. बरहाल अब खनन खुलने से शकील जैसे मजदूर खुश हैं जो इससे अपनी दिहाड़ी कमा रहे थे, लेकिन सामाजिक क्षेत्र के लोग अंधाधुंध खनन पर अंकुश की बात भी कर रहे हैं. अधिवक्ता ललित जोशी कहते हैं कि इसे रोजगार का साधन बनाते हुए ग्राम सभाओं के जरिए कराया जाए और सहकारिता में इसके पट्टे दिए जाएं. इसी तरह अधिवक्ता चंद्रशेखर करगेती भी मानते हैं कि गांव के संसाधनों के व्यवस्थापन और उपयोग का जिम्मा ग्रामसभाओं को ही सौंपा जाए.

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