पिछले कुछ दिनों के दौरान अमेरिका में पैदा हुए बैंकिंग संकट की वजह से पूरी दुनिया में खलबली मची हुई है. जहां सोने और चांदी के दामों में बढ़त देखने को मिल रही है वहीं, इस संकट की वजह से बहुत से स्टार्टअप्स और टेक कंपनियों पर खतरा होने कि आशंका भी जताई जा रही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि, 2011 से लेकर अब तक 12 विदेशी बैंक भारत में अपना कारोबार बंद कर चुके हैं. आखिर ऐसा क्या हुआ कि इन बैंकों को भारत में अपना कारोबार बंद करना पड़ा?
इस वजह से बंद किया अपना कारोबार: 2011 से लेकर अब तक लगभग 12 विदेशी बैंकों ने भारत में या तो अपना बिजनेस बंद कर दिया है या फिर अपने ऑपरेशंस को बिलकुल कम कर दिया है. आइये जानते हैं ऐसा होने के पीछे प्रमुख वजहें क्या हैं?
1. विदेशी बैंकों के साथ अलग बर्ताव: विदेशी बैंकों और भारतीय बैंकों के बीच लोन देने और टैक्स लगाने जैसे प्रमुख मुद्दों को लेकर अक्सर ही खींचातानी होती रही है. विदेशी बैंकों को इन मुद्दों से निपटने के लिए पूरी तरह से एक सब्सिडियरी बनाने का सुझाव दिया गया था, लेकिन ज्यादातर विदेशी बैंकों ने इस सुझाव को इसलिए नहीं माना क्योंकि भारतीय रूपया पूरी तरह कनवर्टिबल नहीं हो सकता था.
2. एसेट्स की खराब क्वालिटी: साल 2018 में IL&FS का संकट पैदा हुआ था जिसकी वजह से बहुत से प्रमुख बैंकों और विदेशी बैंकों द्वारा लोन देने की क्षमता में कमी आई. इस वजह से विदेशी बैंकों के पास अच्छी क्रेडिट क्वालिटी रेटिंग्स होने के बावजूद उनकी लोन देने की क्षमता को खारिज कर दिया गया.
3. लिक्विडिटी ज्यादा और इंटरेस्ट रेट्स कम: महामारी की वजह से बहुत लम्बे समय तक RBI (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) और सरकार की वित्तीय पॉलिसी में एक ढीलापन बना रहा. इसकी वजह से लिक्विडिटी बढ़ गयी और इंटरेस्ट रेट बहुत ही कम हो गए. रिटेल बैंकिंग का बिजनेस ज्यादा मार्जिन का नहीं बल्कि ज्यादा मात्रा का बिजनेस होता है और बैंकों को यह बात हमेशा से पता थी. लेकिन ज्यादातर बैंक इस बिजनेस में फंड की कमी की वजह से घुसे और जब कुछ और समझ नहीं आया तो उन्होंने बड़े-बड़े बिजनेसों को कैपिटल आवंटित करना शुरू किया.
4. घरेलु बैंकों से मिला बहुत कॉम्पिटिशन: टेक्नोलॉजी के मामले में भारत के घरेलु फाइनेंशियल संस्थानों ने अपना लेवल पहले से बहुत ऊपर कर लिया है और इसकी वजह से बदलती हुई मार्केट की जरूरतों को पूरा करने की उनकी क्षमता में भी वृद्धि हुई है. हालांकि विदेशी बैंकों की मैनेजमेंट भारतीय है लेकिन ज्यादातर बड़े फैसले अभी भी ग्लोबल लेवल पर लिए जाते हैं और इस वजह से विदेशी बैंक भारतीय मार्केट में होने वाले बदलावों के प्रति इतनी जल्दी रियेक्ट नहीं कर पाते.
इन विदेशी बैंकों ने छोड़ा भारतीय मार्केट:
Deutsche Bank: Deutsche बैंक भी दुनिया भर में बहुत तेजी से बढ़ते बैंकों में से एक है. बैंक ने अपना क्रेडिट कार्ड बिजनेस साल 2011 में Indusind बैंक को बेच दिया था.
Barclays: साल 2012 में Barclays ने अपने ऑपरेशंस को बहुत बड़े स्तर पर कम कर लिया था.
UBS, Morgan Stanley: जहां UBS ने भारत में अपने ऑपरेशंस को साल 2013 में ही बंद कर लिया था वहीं Morgan Stanley ने अपना बैंकिंग लाइसेंस खोने की वजह से भारत में अपना बिजनेस बंद कर दिया था.
Merrill Lynch, Barclays, Standard Chartered: साल 2015 में Merrill Lynch, Barclays और Standard Chartered जैसे प्रमुख बैंकों ने भारत में अपने ऑपरेशंस को समेट लिया था.
Commonwealth Bank Of Australia, RBS & HSBC: Commonwealth Bank Of Australia ने साल 2016 में अपने ऑपरेशंस को बंद कर दिया था जबकि RBS (रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड) ने अपने कॉर्पोरेट, रिटेल और संस्थागत बिजनेस को पूरी तरह समेट लिया था. इतना ही नहीं इसी साल HSBC ने देशभर में मौजूद अपनी शाखाओं को घटाकर आधा कर दिया था.
BNP Paribas: BNP Paribas ने साल 2020 में भारत के अन्दर अपने वेल्थ मैनेजमेंट बिजनेस को बंद कर लिया था.
Citi Bank: इस साल, बैंकिंग क्षेत्र के प्रमुख विदेशी बैंक Citi बैंक ने अपना रिटेल बिजनेस एक्सिस बैंक को बेच दिया है.