(बबिता शाह लोहानी, NTI न्यूज़ ब्यूरो )
एक समय नारा दिया गया था कि ‘बाल मजदूरी बंद हो’ पर शायद किसी ने ये नहीं सोचा की एक बच्चा आखिर क्यों मजदूरी करने पर मजबूर हुआ? और अगर किसी बच्चे को खाना तक नसीब नहीं हुआ तो वो क्या करेगा? या तो वो भीख मांगेगा या फिर उसका बचपन उन अपराध की गलियों में घुस जाएगा. जहां से वापस सिर्फ उसकी लावारिश लाश ही आती है. मगर अफसोस कि आज देश की राजनीति से ये सवाल कहीं गायब से हो गये हैं. ये एक तमाचा हैं उन सभी नेताओं के गाल पर, जिन्होंने जाकर देश की जनता से वोट मांगे थे.
मगर अब सवाल उठता है कि आखिर क्यों आज हिंदुस्तान का एक तबका सडकों पर रहने को मजबूर है? दरअसल, इस बात को साबित करने के लिए कहीं दूर जाने की ज़रूरत नहीं हैं. देश की राजधानी दिल्ली में लोग सड़कों पर खाना बनाते हैं. आपने भी सोते हुए लोगों को देखा होगा. पर शायद आज की भाग-दौड़ में किसी के पास इतना वक़्त नहीं, जो ये जानें कि वो कहां से आये हैं और क्यों उनको अपने घर से ज्यादा सुकून इन महानगर की सड़कों पर सोने में आता है?
दरअसल, वे कोई शौक से यहां ऐसी जिंदगी जीने नहीं आते. इसकी वज़ह उनकी और उससे भी ज्यादा ज़रूरी अपने बच्चों और परिवार की भूख मिटाने की ज़िम्मेदारी निभाने की कोशिश होती है, जिसे वो बड़ी इमानदारी से निभाते हैं. उनमें से कई अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुए नशे में डूबे एक रईस की बड़ी गाड़ियों के पहियों तले रौंद भी दिए जाते हैं. पर मौत सिर्फ उनकी नहीं होती जो रौंदे जाते हैं, मौत होती है पूरे परिवार की. मगर अफसोस कि ये दर्द कौन समझे? वैसे भी बात जब इन्साफ की आती है तो उसमें भी बची हुई ज़िन्दगी ख़त्म हो जाती हैं और मिलती हैं सिर्फ तारीख.
मगर बड़ा सवाल है कि आखिर क्यों एक तबका आज भी सड़कों पर जीता है, मरता है? आखिर इसका जिम्मेदार कौन है. वो जिसने कुचला या फिर वो जो तरक्की के नाम पर खुद को देश का महाराज समझ बैठे हैं. मगर देश की राजनीति में ये भी सवाल नहीं हैं. दरअसल देश के ठेकेदारों के मुंह पर ये दूसरा तमाचा है.