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पर्यावरण की बदहाली और उत्सव मनाते फ़ेसबुकिये दोस्त

(रघुबीर बिष्ट, सामाजिक कार्यकर्ता)

5 जून को एक बार फिर हमने पर्यावरण दिवस मनाया, सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्था इस दिवस को मनाने के लिए अपनी-अपनी योजनाएं तैयार कर हजारों रुपये खर्च कर रहे हैं। आज के दिन पर्यावरण से जुड़े बड़े मुद्दे जैसे ग्लोबल वॉर्मिंग, भोजन की बर्बादी और नुकसान, वनों की कटाई, प्रदूषण का बढ़ता प्रकोप इत्यादि पर बहस हुई जिसके लिए तमाम तरह के आयोजन किये गए जैसे- कुछ स्थानों पर भाषण, निबंध और चित्रकला जैसी प्रतियोगिताएं करवाई गई  और चुनिंदा स्थानों पर वृक्षारोपण के साथ-साथ साफ-सफाई को लेकर कुछ रस्म अदायगी के साथ फोटो सूट किया गया और बच गया पर्यावरण। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जितनी जोश-ख़रोश से पर्यावरण दिवस मनाया गया क्या यह जोश 6 जून से लेकर आगे आने वाले पर्यावरण दिवस तक बना रहेगा?

तो सवाल यह उठता है, आखिर विश्व पर्यावरण दिवस क्यों मनाया जाता है, वैश्विक स्तर पर आम लोगो  को जागरुक करने और पर्यावरण की रक्षा करने एवं उन्हे एक मंच पर लाने के लिए वर्ष 1974 से हर 5 जून को ओक वार्षिक कार्यक्रम के रूप में विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने की शुरुआत की गयी जिसका लक्ष्य आमलोगों को जागरुक बनाना, विकसित पर्यावर्णीय सुरक्षा उपायों एवं पर्यावरणीय मुद्दों की ओर नकारात्मक बदलाव रोकने के लिये सक्रीय रुप से समाज और समुदाय के आमलोगों को बढ़ावा देना, एवं सुरक्षित, स्वच्छ माहौल को तैयार करना जिसे आगे आने वाले पीढ़ी को दिया जा सके। इसके लिए हर साल एक नए थीम के साथ इस दिवस को मनाया जाता है।

1974 से अभी तक हम 44वां पर्यावरण दिवस मनाने जा रहे है, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है, जैसे-  विश्व के तमाम बड़े शहर खास कर देश के लगभग बड़े शहरों में हवा इतनी प्रदूषित हो गई है, कि सांस लेने लायक नही रही है, पृथ्वी के तापमान में अप्रत्याशित बढ़ोतरी के चलते ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे आने वाले समय में देश को भारी जल-संकट से निपटने के लिए अभी से कमर कसनी होगी। शहर तो छोड़िये अब गांवों में भी मिरनल वॉटर से काम चलाना पड़ रहा है। पर्यावरण के कारण बाढ़-सुखार की समस्याएं बढ़ रही है, जिसका सीधा असर देश के खेती पर दिखने को मिल रहा है।

इसी बीच संयुक्त राज्य अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर करने के लिए डोनाल्ड ट्रम्प का गैरजिम्मेदाराना हरकत कहीं ना कहीं पर्यावरण के मुद्दे को लेकर तैयार एक गंभीर वैश्विक मंच के लिये नुकसानदेह साबित होगा। हालाकिं यह भारत जैसे देशों के लिए एक अवसर भी है जहां भारत पर्यावरण के मुद्दे पर वैश्विक नेतृत्व प्रदान कर सकता है। भारत को 1974 में हुए चिपको आंदोलन से प्रेरणा लेनी होगी और यह साबित करना होगा कि पर्यावरण सरंक्षण में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका स्थानीय लोगों की होती है और सालो भर स्वच्छता अभियान, वृक्षा-रोपन, कचरा प्रबंधन, कला प्रदर्शनी, मीडिया की भूमिका खास कर सोशल मीडिया के द्वारा अभियान को तेज कर लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरुक करना होगा।

इसके साथ ही भारत को नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारी वृद्धि दिखानी होगी। जलवायु कार्रवाई में भारत सहित सभी देशों के लिए जबरदस्त जीत की संभावना है – स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण से जुड़े सभी देशों के लिए सस्ता, स्वच्छ ऊर्जा, आर्थिक नवाचार और रोजगार के अवसर, प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को विशेष रूप से वनों की कटाई, कम हवा और जल प्रदूषण और एक अधिक स्थिर जलवायु ग्रह को अमरीका की उचित हिस्सेदारी करने की जरूरत है, जिसे संयुक्त राज्य के रहने या ना रहने के बाद भी किया जा सकता है।

भौतिकवाद के इस युग में पर्यावरण सरंक्षण के लिए केवल एक दिन ही काफी नहीं है इसके लिए सालों भर हमें पर्यावरण सरंक्षण के प्रति सजग-जागरुक रहना होगा। साथ ही हमें अपने-अपने स्तर पर छोटे से छोटे पहल करने होगे तभी इस गम्भीर चुनौती से निपटा जा सकता है।

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